bada kasht hai jindagi me


बड़ा कष्ट है जिंदगी में  bada kasht hai jindagi me - 


भाई जिंदगी में आजकल बड़ा कष्ट हो गया है पहले जिस रात में हम बड़े आराम से सोते थे उसका भी चैन  इस  मोबाइल ने छीन लिया उठ - उठ के देखते है, तकिया के नीचे से निकाल के देखते है 5 मिनट के लिए आँखों से ओझल हो जाये तो बैचेन हो उठते है। सोचिये जब एक अदने से वस्तु को लेकर जिंदगी कष्टकारक हो जाती है तो अभी तो तमाम मुश्किलें है। 


स्कूल गए तो सीखने से ज्यादा नंबर लाने की टेंशन , भारी भरकम बस्ते को नाजुक कंधो पर उठाने की टेंशन 
टाई पहनेंगे तभी हाई - फाई स्टूडेंट लगेंगे , पता नहीं इस टाई में पढाई से सम्बंधित ऐसा कौन सा गुण  होता है जो गले को कस  कर हमें पढ़ना सीखा देता है। बेल्ट तो खैर पैंट ढीली होने पर उसको रोकने के काम आ सकती है , पर ये शर्ट कहा भागी जा रही है। पहले तो साल में केवल 2 परीक्षाये होती थी अर्धवार्षिक और सालाना यानि halfyearly और yearly . पर अब हर महीने न जाने कितनी परीक्षाएं होती रहती है। 

bada kasht hai jindagi me


स्कूल ख़त्म तो कॉलेज में एड्मिशन और कॅरिअर को लेकर टेंशन उसके लिए भी तैयारी। उद्देश्य केवल एक ही नाम और पैसा। मुझे ये समझ में नहीं आता की जब पूरी ज़िन्दगी का उद्देश्य इन्ही दोनों चीजों पर आकर ख़त्म हो जाता है तो शुरू से इतना कष्ट उठाने पर मजबूर क्यों किया जाता है। कॉलेज तक नंबर लाने और अव्वल आने का प्रेशर बरकरार रहता है। फिर शुरू होती है नौकरी को लेकर जंग जिसमे सरकारी का तो हाल ही मत पूछिए एक अनार सौ  बीमार वाली हालत हो गई है , प्राइवेट में ही इतनी  दिक्कत है नौकरी मिलने से लेकर उसको बरक़रार रखने की दिक्कत , सीनियर की बिना मतलब की फटकार , अत्यधिक काम का तनाव ऊपर से नाम मात्र का वेतन और अगर कोई नौकरी नहीं मिली तो बेरोजगारी का दंश मतलब कष्ट ही कष्ट। 

नौकरी के बाद बात आती है शादी पे ,आपकी शादी बहुत हद तक आपकी नौकरी पर ही निर्भर करती है नौकरी अच्छी रहेगी तो कहते है छोकरी भी अच्छी मिलेगी नहीं तो मुझे थ्री इडियट फिल्म का एक डायलॉक याद आता है की अगर अच्छी नौकरी नहीं रहेगी तो कोई बैंक क्रेडिट कार्ड नहीं देगा , लोग रिसपेक्ट नहीं देंगे और कोई बाप अपनी बेटी नहीं देगा। एक चुटकुला भी काफी प्रचलित है की एक बार एक गुरूजी अपने विद्यार्थी को परीक्षा के प्रति लगाव न देखते हुए कहते है की हे शिष्य परीक्षा हाल में तुम्हारे द्वारा किया गया एक भी गलत प्रश्न भविष्य में होने वाले तुम्हारे हमीमून को स्विट्जरलैंड से लखनऊ शिफ्ट कर सकता है तबसे वो बालक आजतक कक्षा  में अव्वल आ रहा है। 


शादी का लड्डू ऐसा होता है की जो खाये वो पछताए और जो न खाये वो भी पछताए। बडे कष्टों की शुरुआत तो होती है शादी के बाद जिसके लक्षण शादी के एक महीने बाद ही परिलक्षित होने लगते है और शुरुआत होती है रोज के तू - तू ,मैं - मैं से लेकर रोज मिलने वाले नाना प्रकार के तानो से । और बेलन ,झाड़ू से लेकर शब्दों के कौन से जाल नहीं चलते मत पूछिए वेदो में सत्य ही कहा गया है हे नारी तू सब पर भारी और आज के  पुरुष कहते है हे नारी तू अत्याचारी । अब नारी व्यथा और पुरुष प्रताड़ना प्रथा की कहानी सब को पता  है उसके बारे में कभी विस्तार से चर्चा होगी क्योंकि  समाज का कोई ही ऐसा पुरुष होगा जो खुल के और ईमानदारी से कह सकता है की वो अपनी बीवी से सुखी है और पत्नी भी अपने पति के बारे में ये झूठ बोलने से पीछे नहीं रहती। 
अभी तक जो शादी नाम की दुर्घटना से बचे हुए है उनसे निवेदन है की जान जोखिम में डालने से पहले शादी को लेकर अपना रिसर्च अच्छे से कर ले तथा बाद में किसी पर दोषारोपण न करे। 

शादी के कष्ट के साथ - साथ आपकी शरारतो के परिणाम भी सामने आने लगते है जो की अत्यंत ही शरारती होते है।  लालन - पालन पहले की अपेक्षा आसान नहीं रहे , जिस संयुक्त परिवार को हम अपने लालच वश ख़त्म करते जा रहे है उस संयुक्त परिवार की महत्ता को हम नकार नहीं सकते।  आज एक बच्चे की परवरिश में अनेक कष्टों को उठाना पड़  जाता है वही संयुक्त(joint family) परिवार में  चार - चार बच्चो की परिवरिश आसानी से हो जाती थी। दादी बच्चो की मालिश करती  तो दादा कहानिया सुनाते , चाची या बुआ सुबह का टिफिन तैयार करती तो चाचा स्कूल छोड़के आते लेकिन अब इतने सारे कामो का बोझ खुद ही उठाना पड़ता है ऊपर से ऑफिस अलग से समय पे पहुंचना। 

बच्चे बड़े हुए तो उनके कॅरियर सवारने  की टेंशन दिन - रात एक करके पैसा जमा करो और फिर किसी लायक न हुए तो सब व्यर्थ फिर कष्ट , और बुढ़ापे की तो पूछिए ही मत आज - कल के जो हालात  है उसको देखते हुए तो लगता है जैसे हमारे पूर्वज हमसे कह रहे है अपनी तो जैसे - तैसे कट गई आपका क्या होगा जनाबे अली। क्योंकि आज की नई पीढ़ी के सामाजिक सरोकार केवल नाममात्र के रह गए है , कभी सोचता हू  की समाज और विज्ञान की इतनी तरक्की हमारे किस काम की पूरी दुनिया घूमने के बाद भी इंसान तन्हा  है, लाखो रूपये की नौकरी मिलने के बाद भी कंगाल है उसके पास खुद के लिए समय नहीं बचता उसके अपने बच्चे उसकी बातो को अनदेखा या भार समझते है बीवी दिन रात खरीदारी में व्यस्त है या उसको प्रताड़ना देती है। माँ - बाप को तो वो कही दूर  गांव में छोड़ आया , अपने भाई - बहन तो अब रिश्तेदारों की श्रेणी में आ गए है , रिश्तो से  वो मिठास न जाने कहा चली गई और कहने को  हम तरक्की कर रहे है पर  इस संसार के बनाये नए भौतिक मायाजाल में फंसकर जिंदगी को कष्टदायक बनाते जा रहे है। 


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naya dour(poetry)

main aur wo

नया दौर naya dour 



हम भी नए थे कभी इस शहर में फरबरी माह में 
वो मिली थी कभी बीच राह  में

मुंह का ढक्कन खुल गया था 
और आँखों से ऐनक हट  गया था 

देखा  उनको तो दिल की धड़कन बढ़ने लगी
 और नजरो से नजरे लड़ने लगी 

हमने भी आंव न देखा न ताव 
लेके पहुँच गए बड़ा पाव 

और बोल दिया उनसे 
की इश्क़ हो गया है तुमसे 

तोहफा करो कबूल 
क्योंकि इश्क़ का ये है पहला उसूल 

शर्मा के मुस्कुरा दी वो 
और एक ही झटके में पूरा बड़ा पाँव खा गई वो 

और फिर लेकर डकार 
बोली आई लव यू  मेरे यार 

फिर क्या था 
लेके अपनी फटफटिया 
घूमे छपरा से लेकर हटिया 

तभी सामने आ गए पप्पा 
दिया खिंच के एक लप्पा 

जी भर के दिया  हमको  गाली 
नालायक , कमीना,लोफर  और मवाली 

देखा हमको पीटते 
वो भी चुपके से खिसके 

हमने कहा यही था साथ तुम्हारा 
पल भर में जीने मरने की कसमे  खाई थी 
और पल में साथ छोड़ गई हमारा

वो बोली कैसी कसमे  कैसा प्यार
ये तो है बाते बेकार 

ना  मैं हीर ना  तू रांझा
प्यार नहीं अब किसी का सच्चा 

आज तू कल कोई और है 
यही नया दौर है 

हमने भी बोल  दिया उससे
दौर चाहे कोई हो चाहे ये आँखे रोइ हो
आज भी हीर है आज भी है रांझा 
बस मैं ही थोड़ी देर से समझा।   


lekhak
लेखक 



congress mukt bharat ki or

कांग्रेस मुक्त भारत की ओर   congress mukt bharat की ओर - 

                                         
congress mukt bharat ki or
मोदी रैली 
                   


त्रिपुरा ,मेघालय और नागालैंड एक बार फिर से बीजेपी इन तीन  राज्यों में भी सरकार  बनाने में कामयाब हुई। 
इन तीनो राज्यों में मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी कांग्रेस सरकार बनाने में चूक गई।  वैसे इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि  कांग्रेस पार्टी इस समय कमजोर नेतृत्व के दौर से गुजर रही  है.राहुल गाँधी  एक बार फिर अपनी नानी से मिलने इटली जा चुके है वैसे उन्हें अपनी नानी को ही इंडिया बुला लेना चाहिए था , मुझे लगता है पार्टी से ज्यादा उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में सहजता महसूस होती है , सोनिया गांधी को भी समझ लेना चाहिए की किसी को भी उसके रूचि के अनुसार ही काम देना चाहिए नहीं तो वो उस काम का पूरा बंटाधार कर सकता है।  

इन तीन राज्यों में बीजेपी को उम्मीद  से बढ़कर समर्थन मिला है  जोकि साबित करता है की बीजेपी और मोदी का जलवा कायम है और वे कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ते दिख रहे है। वर्तमान समय में 21 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों  की सरकार  है जिनमे से 15 राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री है ,कांग्रेस केवल 3 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में  सिमट के रह गई है जिनमे से पंजाब और कर्नाटका बड़े  राज्य है बाकि मिजोरम और  एक केंद्र शासित प्रदेश पॉन्डिचेरी है। 


यह कहना कबीले तारीफ़ होगा की बीजेपी ने इन राज्यों के लिए विशेष रणनीति बनाई थी इन राज्यों में चर्च का प्रभाव भी रहता है जिसके लिए बीजेपी ने अपना हिंदुत्व वादी चेहरा छोड़कर नई रणनीति बनाई और आम आदमी का विश्वास जितने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस अपनी आपसी गुटबाजी का शिकार हुई और आलाकमान उस पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाया अब तो लगता है बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में खुद कांग्रेस और उसका कमजोर नेतृत्व ही एक सहायक के तौर  पे काम कर रहे है।क्योंकि कांग्रेस के पास मुद्दे होते हुए भी वो उनका इस्तेमाल नहीं कर पाती , संघठन में भी निराशा घर करते जा रही है जो की कमजोर नायकवाद या  यू  कहे की परिवारवाद  को आगे बढ़ाने  का ही फल है , नहीं तो कांग्रेस पार्टी में अभी कई ऐसे नेता है जो एक कुशल नेतृत्व देने में सक्षम है परन्तु उनके आगे आने पर पार्टी से परिवार का नियंत्रण क्षीण हो जायेगा। इसीलिए बीजेपी को वर्तमान में कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा करने से रोकने  वाला कोई दिखाई नहीं देता। 

मोदी लहर  इसलिए और बढ़ती जा रही है की किसी  भी पार्टी में नरेंद्र  मोदी  जैसा विश्वसनीय चेहरा नहीं है यही कारण है की अगले चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड मोदी  के बीच होंगे जहा इतने सालो में मोदी के समक्ष चुनौती उनके द्वारा किये गए वादे ही होंगे।  फिलहाल इन चुनावों के नतीजे बीजेपी  के लिए 2019  की  पृष्ठभुमि तैयार करने में काफी हद तक सहायता प्रदान करेंगे। 


मौजूदा समय में कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने  के लिए संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा था वो कही न कही पूरा होते दिख रहा है , हर राज्य में होने वाले चुनाव में प्रमुख चेहरा मोदी का ही होता है  इसीलिए जीत का सेहरा भी किंग मोदी के सर ही बंधता है। 




social media vs news channel

सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल social media vs news channel


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सोशल मीडिया 


जबसे फेसबुक ,व्हाट्सअप और इस जैसे अन्य अस्त्रों  का अवतरण हुआ है तबसे घर में मुंह बांधके बैठने वाले लोग भी अचानक से अपने विराट अवतार में मंच पे आने लगे है। बस कमाल  है कुछ उंगलियों का जो कीबोर्ड या टच स्क्रीन पे चलती है। पहले इंडिया - पाकिस्तान के मैच में टीवी गुस्सा उतरने का एक प्रमुख माध्यम हुआ करती थी। पर अब तो सोशल मीडिया पे ही वॉक युद्ध शुरू हो जाता है नित्य नए - नए शब्दों के अविष्कार होते रहता है जिनके प्रहार से विरोधी खेमे में तहलका मच जाता है।



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न्यूज़ चैनल 


मुद्दा चाहे राजनीति का हो खेल का हो या समाज से जुड़ा हो सारी बातें आपको न्यूज़ चैनल से पहले सोशल मीडिया के माध्यम से मिल जाती है , हद तो तब हो जाती है जब परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र तक आपके व्हाट्सअप पर आ जाता है। एक समय था जब सोशल मीडिया के खिलाड़ी समाज में किसी तरह की अफवाह फ़ैलाने में कामयाब हो जाते थे इसके लिए वे साल भर पुरानी खबर मसाला लगाकर नए रूप में परोसते थे  या किसी अन्य जगहों की तस्वीर या विडियो दिखाकर उनका गलत इस्तेमाल किया करते थे ऐसे में सोशल मीडिया की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो जाती थी बदस्तूर इनका खेल अभी भी जारी है परन्तु सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता इन सारी बातो को अच्छे से समझने लगे है। अब इन पर वायरल खबर की पड़ताल करने के बाद ही उन पर विश्वास किया जाता है। इन खबरों की पड़ताल कई न्यूज़ चैनल भी करते है और अपने चैनल पे जासूसी जैसा धारावाहिक  बनाकर परोसते है। 

शायद ही कोई ऐसा घर या व्यक्ति हो जो सोशल मीडिया पे उपस्थित न हो। क्योंकि इस प्लेटफार्म पे उपस्थिति दर्ज न कराना  पिछड़ेपन की निशानी माना  जाता है ,इसी कारण  सारे न्यूज़ चैनल भी सोशल मीडिया पर उपस्थित है। कभी इनके कमेंट बॉक्स में जाके तो देखिये आपको सम्पूर्ण भारत की  विचारधारा की झलक मिल जाएगी ,और साथ में  कई उपयोगकर्ताओं के बीच चलने वाले वॉक युद्ध की झलक भी जिनमे कई ऐसे शब्द मिलेंगे जिनसे आप भी परिचित नहीं होंगे। 

न्यूज़ चैनल अक्सर खबरों को अपनी trp के अनुसार प्रबंधित करते है और इसके लिए वे किसी भी हद तक चले जाते है , एक ही खबर की अलग - अलग  न्यूज़ चैनलो पे  अलग - अलग व्याख्या की जाती है , जबकि  सोशल मीडिया में खबर  तो वही रहती है लेकिन उसपे आने वाले कमेंट अत्यंत ही रोचक होते है। अगर कोई खबर अच्छे तरीके से प्रस्तुत है तो उसको सराहना भी मिलती है , कभी कभी तो कोई खबर या वीडियो इतना पॉपुलर हो जाता है की उससे समबन्धित व्यक्ति अचानक से ही सुर्खियों में आ जाता है जिसकी उसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती, तत्काल में वेलेंटाइन डे से पूर्व प्रिया  प्रकाश वारियर इसका सबसे बड़ा उदहारण है जो की पुरे देश का नेशनल क्रश बन गई थी। और उनके इंस्टाग्राम खाते में एक ही दिन में अनुयाईयों की संख्या छः लाख पहुंच गई  इस वजह से उनका कॅरियर अचानक से चमक उठा। 

कुल मिलकर सोशल मीडिया वर्तमान समय में आम आदमी की आवाज बनता जा रहा है और इसकी पहुँच और बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इससे लाभ लेने वालो की संख्या भी जो इसको अपने  अनुसार ढालने की कोशिश करते दिख जाते है। ऐसे लोगो में सबसे अधिक संख्या राजनीतिज्ञों की है क्योंकि न्यूज़ चैनेलो को तो वे अन्य तरीको से प्रबंधित कर लेते है और न्यूज़ चैनल व्यावसायिक होने के कारण अपना मूल धर्म सच वो भी पूरा सच को सामने लाने की बजाय उनसे होने वाले लाभ और हानि की समीक्षा करने के बाद ही उनका प्रसारण करते है जबकि सोशल मीडिया में आम आदमी भी अपनी बात और और किसी घटना को शेयर कर सकता है।


इसी कारण पहले जो राजनेता सोशल मीडिया को एक शसक्त माध्यम बताते थे वही सोशल मीडिया में अपने कार्यो की परिणीति के फलस्वरूप अपनी घटती लोकप्रियता और सोशल मीडिया पर  आम आदमी के तर्कों से परेशां  इसके दुरूपयोग की बात कर रहे है।  

इंटरनेट क्रांति और खास तौर पर डाटा के घटते दामों ने सोशल मीडिया को और बड़ा करने का काम किया है और इसपर आने वाली अनेक नई  तकनीक इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ा ही  रही है , वही व्यावसायिकता और गलत रिपोर्टिंग के कारण न्यूज़ चैनल इनका मुकाबला करने में कही से सक्षम नहीं दिखते। 

      
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न्यूज़  चैनलों पे होने वाली डिबेट  और उनकी प्रासंगिकता



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