Ab to achhe din dikhla do sarkar

अच्छे दिनों की आस में 


बड़ी मुश्किल से एक एक रुपया जोड़कर 4 जी मोबाइल के लिये पैसा जमा किया था मोदी सरकार ने वो भी तोड़ दिया , लगा क‍ि अच्छे दिन की तरह 4 जी मोबाइल के लिये अभी कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा , दिन भर टी वी पर सिर खपाने के बाद निष्कर्ष निकला क‍ि बजट कुछ समझ में नहीं आया , आखिर सरकार ने आम आदमी को राहत दिया है या हमेशा की तरह देश की जीडीपी की दुहाई देकर उसकी बैंड बजाई है।

 सरकार से निवेदन है क‍ि कभी कभी धरातल पे उतरके आम इंसानों की जिंदगी की जीडीपी भी समझ लिया करो। कभी कभी तो लगता है क‍ि सरकार, सरकार ना होकर एक फाइनेंशियल इन्स्टिट्यूट होकर रह गई है जिसका काम बस लोगों का खाता खुलवाने से लेकर बीमा करने तक रह गया है ए बिल्कुल वैसा ही है जैसे मुर्गी को दाना डालकर हलाल करना . गरीब आदमी जिसका मुफ्त मे खाता खुलवा कर सब्सिडी के कुछ पैसे डालकर फिर उन्ही पैसो को बैंक द्वारा मिनिमम बॅलेन्स के नाम पे काट लिया जाता है।

 ऐसा करके लगभग 1700 करोड़ रुपया बांको द्वारा गरीबो से वसूला गया. समझाने के लिये इतना ही काफी है गरीब को सब्सिडी का पैसा पाने के लिये बैंक मे खाता खुलवाना और उसे आधार से लिंक करना आवश्यक है ये उसकी मजबूरी है , अगर उसके पास मिनिमम बॅलेन्स इतना भी पैसा नही है तो क्यो नही उसका खाता बंद करके उसको पूर्व की भांती सब्सिडी जारी रखी जाये , और उससे भुगतान के समय ही राहत प्रदान की जाये . अगर उसके पास इतना ही पैसा रहता तो वो गरीब ही क्यो कहलाता . 

pakoura
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हाँ तो आते है अब बजट पे तो इस बार सरकार कहा पीछे रहने वाली थी , बीमा दिया इन्होने…. किसानो को , स्वास्थ्य का भी बीमा दिया . पर उसके लिये तो बीमार पड़ना पड़ेगा इनके टर्म एंड कंडीशन मानने पडेंगे . सेस को बढ़ा दिया जिससे विभिन्न प्रकार की शिक्षा और स्वास्थ्य बिलों के दाम बढ़ेंगे समझ में नही आता एक देश एक टैक्स का नारा कहा गया . कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई . जेटली जी के विषय मे एक बात कहना चाहूंगा क्या वकालत के सिवा उन्हे अर्थशास्त्र मे भी महारत हासिल है .

 सुब्रमण्यम स्वामी ने शुरु मे ही इनकी काबलियत जग जाहिर कर दी थी पर अपनी राजनीतिक कुशलता से जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी इस देश के वित्तमंत्री है . मीडिया से भी अनुरोध है क‍ि वो केवल चुनाव के समय ही नही बल्कि अपनी दैनिक रिपोर्टिंग में सरकार की विभिन्न योजनाओं की जमीनी स्तर पे निष्पक्ष भाव से विवेचना करे . ताकि हम भी जान सकें क‍ि सरकार अपने चुनावी वादों में कितनी खरी उतरी है. फिलहाल इस आम बजट में कोई भी ऐसी चीज नहीं है जिससे आम जनता, और निचले तबके के लोग राहत महसूस कर सकें..


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उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari



 कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमेंट शुरू हुआ तबसे बेरोजगारी भी बढ़ना शुरू हो गई , पहले तो नौकरी के लिए सारे प्रयास कर लिए, एक से एक डिग्री ले ली। कई हजार के फॉर्म भर के परीक्षा दे आए कभी दो नंबर से चुके कभी चार से बसो और ट्रेनो पे लटक के गये लटकते टाइम कसम से ऐसी फीलिंग आई की इस बार नौकरी मिल के ही रहेगी पर पता नही क्यों रिज़ल्ट से ये फेल कीवर्ड नही हटा पाए।
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इसी चक्कर में पूरा भारत भ्रमण भी कर लिया। परीक्षा देते समय सारे नियमों का पालन भी किया, सुबह – सुबह उठकर काली गाय को ढूंढ़कर रोटी खिलाने से लेकर नित्य हनुमान चालीसा तक सब किया कई बार गाय की दुलत्ती भी खानी पड़ी। कई पंडितों को हाथ से लेकर कुंडली तक, सब दिखाया कभी कोई राहु काल बताता तो कभी कोई शनि की महादशा और हम इन्ही ग्रहों के चक्कर काटते रह जाते। 

कई लड़की वाले सुन्दर मुखड़ा देख के अनायस ही पूछ बैठते की” बेटा क्या कर रहे हो “कसम से इतना गुस्सा आता की कह देते “अंकल कलेक्टर “है। किसी ऑफिस वगैरह में यदि किसी काम से जाना भी पड़ता तो कोशिश करते की ना ही जाये क्योंकि वहा पे भी यही सवाल दागा जाता और उत्तर ना मे सुनने पर सामने वाले को ऐसा लगता जैसे हमसे बड़ा बेचारा कोई है ही नही. अब तो रिश्तेदारियो मे भी हमने जाना छोड़ दिया क्योंकि वहा तो इस सवाल के साथ उपदेश ज्यादा होता था इनके द्वारा अनेक ऐसे लडको का इज्जत के साथ उदाहरण दिया जाता जिन्हे अच्छी नौकरिया मिल चुकी है और लगता था जैसे हमारी कोई इज्जत ही नही है. 

कई समाज सुधारको द्वारा सूचना केन्द्र की तरह कोई भी फॉर्म निकलने पर तुरंत हमे इत्तेला किया जाता था वो भी पूरे नसीहत के साथ . अब कहा कहा हम इस गुस्से को कण्ट्रोल करते कही कही तो विस्फोट हो ही जाता था. कई सुभचिंतक हमपे दोष ना देकर व्यवस्था, सरकार और राजनीति पे दोष देने लगते . 

कभी कभी तो कसम से हमको भी सरकार पे बड़ा गुस्सा आता लगता जैसे इनके घर नही बसे वैसे ही ये नही चाहते की हम बेरोजगारो के भी घर बसे . आखिर हम भी क्या करे नौकरियो की हालत एक अनार सौ बीमार वाली जो हो गई है . दिन रात पढ़ते – पढ़ते तो अब किताबे भी नाराज हो गई है कहती है इतना घिसोगे तो पानीपत के मैदान से सारी सेना ही गायब हो जायेगी बस मैदान रह जायेगा .

 अब तो लगता है कही एक पकौड़े का ठेला ही लगा दे …

kasganj se kashmir

कासगंज से कश्मीर 


kashganj
हम भारत के लोग 

सड़क , खून , उपद्रव , हिन्दू , मुस्लिम, गाय ,तिरंगा जो शब्द आप को उचित लगे उसे अपने पास रख लीजिये उसके बारे मे सोचिये क्या पायेंगे आप ? बस एक मानसिक बीमारी जो की इन शब्दो द्वारा फैलाया जाता है, इसी मानसिक बीमारी ने कई घरो को बर्बाद कर दिया ,एक शारीरिक बीमारी से सबसे ज्यादा फायदा किसे होता है – डाक्टर को और दवा कम्पनियो को , वैसे ही इन मानसिक बिमारियो से लाभ होता है हमारे राजनेताओ को और हममे ये बीमारी क्यो फैलाई जाती है सिर्फ वोट पाने के लिये जिससे उनकी सत्ता बनी रही और वे राज करते रहे.

नुकसान हमेशा सिर्फ और सिर्फ हमारा है होता है, क्योंकि पुलिस मे भी हमारे ही भाई बहन है और सेना मे भी हमारे ही भाई उपद्रवी भी हमारे घर के गुमराह किये गये बच्चे है और वे टूटी हुई दुकाने और जलते हुए बस भी हमारे ही किसी अपने के है. महल मे रहने वाले तो वो है अपनी सुरक्षा मे सेना लेकर चलने वाले तो वो है और उनको सुरक्षा देने वाले हम ना की हमारी सुरक्षा करने वाले वो .


हम अपनी जान पे खेलके उनकी रक्षा करते है अपनी भारत मां की रक्षा करते है , और बदले मे ये अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये हमारा इस्तेमाल खिलौने की तरह करते रहते है. हमारा खून पानी की तरह सडको पे बहता है और शायद हम अब एक शतरंज के प्यादे की तरह रह गये है ना हमे कश्मीर मे शान्ती से रहने को मिलता है ना कासगंज मे , कभी कश्मीर जलता है तो कभी कोई और प्रदेश.

                                                                                                     raijee

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