jewan mantr



जीवन मन्त्र  

jewan mantr


शब्दों के जाल बिछाने वाले 
कुछ कर्मो के  करतब दिखलाओ 
वाणी से मिसरी घोलने वाले 
तुम मर्म किसी का क्या जानो 
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो 
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़  मन्त्र जीवन का ये 
तुम मानो या ना मानो 

कुछ निंदा करके क्या पाया 
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया 
क्यों उचित को अनुचित में बदला 
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया 

कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ 
कुछ अहम् हृदय में समाया 
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब 
देर समझ में ये आया 

कब विवेक को छोड़ दिया तूने 
कब धैर्य तुझे ना रास आया 
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति 
मोह में तूं है अंधराया 

कब छूटे तुझसे ये धरा 
क्या जग को तूं दे पाया 
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से 
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया 




1 टिप्पणी:

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