time and watch




घडी और वक़्त 


बाल्कनी से झाँकते हुए मेने घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और…पाया की सुबह की तरह दिखने वाला यह मौसम दोपहर के 2 बजा चुका है। ठण्ड है की कम होने का नाम ही नहीं लेती। वैसे तो सारी की सारी घड़ियाँ वक़्त एक सा ही दिखाती है परन्तु घड़ियों की कीमत से इंसान के चलने वाले समय का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
आज जिन हाथो में रैडो सरीखे महंगे ब्रांड की घड़ियाँ सजती है कभी इन्ही हाथो को 20 - 25 रूपये की नेपाली घडी भी नसीब नहीं हो पाई। आज जिस बालकनी में खड़े होकर पूरे शहर का नजारा देख रहे है , कभी नीचे खड़े होकर इन बालकनियों में रहने वालों के बारे में सोचा करते थे।
ये वक़्त कभी ना बदला होता अगर उसने साथ ना दिया होता , ये हाथ इन घड़ियों से कभी ना सजते अगर उसने मेरा हाथ ना थामा होता।
फुटपाथ पर पुरानी किताबें बेचने वाले इस शख्श की किताबी जानकारी और ज्ञान को देखकर अगर उसने तराशा ना होता, तो आज भी सर्द राते उसी फुटपाथ पर गुजरती
" साहब खाना लगा दिया है " दीना - की आवाज के साथ ही मैं वर्तमान में वापस आता हूँ।
नहीं तुम खा लो मुझे आज भूख नहीं।
तरन्नुम नाम था उसका , पुरानी किताबो में ना जाने क्या ढूंढने आती थी वो , शायद मेरी किस्मत खींच लाती थी उसे।
तरन्नुम - तुम भी मियां इतने पढ़े लिखे होने के बाद कोशिश क्यों नहीं करते। चलो अपना सर्टिफिकेट और एक फोटो दो उसके बाद मैं तुम्हे पढ़ाऊंगी।
हमारे बीच ग्राहक और दुकानदार के रिश्ते के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर पहली बार बात यहीं से शुरू हुई थी।
तरन्नुम - अच्छा समय बताओ कितना हुआ है।
मैं - जी मेमसाब ..... वो घडी नहीं है मेरे पास
तरन्नुम - घडी नहीं है ? फिर परीक्षा में समय से जवाब देना कैसे सीखोगे ? कल मैं तुम्हारे लिए एक घडी लेते आउंगी।
मैं समझ नहीं पा रहा था ये क्या हो रहा है बस जो हो रहा है उसे होने दे रहा था।
अगले दिन एच एम् टी की एक घडी मेरे हाथो में थी जिंदगी की पहली घडी शायद वक़्त बदलने का संकेत थी
उसके मिलने और मुझे समझाने का क्रम करीब दो साल तक चलता रहा और लेट से चलने वाले आयोग की परीक्षा भी दो साल बाद ही हुई तब तक मेरी तैयारी भी अच्छी खासी हो चुकी थी।
बीच में उसका मिलना जुलना भी कम हो चुका था परन्तु मेरी पढाई में लापरवाही उसे बिलकुल ना पसंद थी। शायद किस्मत , मेहनत और उसके सहयोग से नसीब को कुछ और ही मंजूर था। पहली बार में किसी ने यूपी पीसीएस में अव्वल स्थान प्राप्त किया था तो वो था मैं। शायद मेरा ईश्वर और उसके अल्लाह दोनों ने हम दोनों की दुआ कबूल कर ली थी।
यह दोस्ती कब मुहब्बत में बदल गई मुझे पता ही ना चला। दोनों के घर वाले राजी ना हुए , सोचा थोड़ा समय लगेगा लेकिन वे हमारे प्यार को जरूर समझेंगे और हम सही साबित हुए। अगले महीने हमारी शादी है, हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही रीतियों से क्योंकि धर्म तो एक माध्यम है बाकी इंसान की वास्तविक ख़ुशी किसमे निहित है आवश्यकता है इसको समझने की।
नोट - हर कहानी का अंत दुखद नहीं होता, वो कहते हैं न हमारी हिंदी फिल्मो की तरह एन्ड तक सब कुछ ठीक - ठाक हो ही जाता है। अगर एन्ड तक ठीक - ठाक ना हो तो ...... ..... .... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।

लेखक के क्वोरा पर दिए एक जवाब से उद्धरण 

1 टिप्पणी:

इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...