budhapa

बुढ़ापा 



बूढ़ा हो चला हूँ मैं
सब कहते है घर का कूड़ा हो चला हूँ मैं

आजतक मशीन की तरह काम करता गया
अपने साथ अपने संस्कारो का नाम करता गया

औलादो को भी तो वही दिया था मैंने
जाने कहा बदल लिए संस्कार उन्होंने

बचे हुए सफ़ेद बालो के साथ
कमजोर और बेसहारा मेरे हाथ

लकड़ी का एक टुकड़ा ढूंढ रहे है
शायद अब अपनों के साथ छूट रहे है

सिकुड़ती चाम , टूटते दांत
कमजोर निगाहें , पिघलती आंत

शायद अपने  अंत के कुछ करीब जा रहा हूँ मैं
मधुमेह ,रक्तचाप और मोतियाबिंद की दवा खा रहा हूँ मैं

मेहमानो  के उपहास का पात्र
कभी था एक होनहार छात्र
बुढऊ कहकर अब समाज बुलाता है
ऊपर से मंद - मंद मुस्कुराता है

शारीरिक दुर्बलता से ग्रसित मेरा शरीर
मानसिक दुर्बलता वालो से क्यों घबड़ाता है
थोड़ा ठहरो तुम सब भी
देखो इस बुढ़ापे से कौन बच पाता है



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