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 मोदी की घटती लोकप्रियता 


कर्नाटका चुनाव के बाद सरकार  बनाने के लिए होने वाली जी तोड़ कोशिश करने के बाद भी बीजेपी सदन में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई जिस तोड़ - फोड़ की राजनीति के लिए वह जानी जाती है उसमे कही न कही फेल हो गई।  हालांकि बीजेपी ने राज्य में सबसे ज्यादा सीट जितने में कामयाबी जरूर हासिल की थी  परन्तु स्पष्ट बहुमत से बस चंद कदम दूर रह गई।

अगर स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो राज्यों में पूर्ण बहुमत ना मिलना कहीं ना कहीं मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता का संकेत देती है , कर्नाटका में तो सत्ता विरोधी रुझान भी थे तभी तो जेडीएस भी सीटे निकालने में कामयाब रही। अगर कहा जाये की मोदी विरोधी रुझान इधर कुछ महीनो से बनना शुरू हुए है तो ज्यादा उचित होगा , इसको समझने के  लिए हमको कुछ तथ्यों पर बेबाक रूप से चर्चा करनी होगी। 

कांग्रेस अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के बाद से लगातार 10 सालो से सत्ता में बनी हुई थी , जाहिर है सत्ता विरोधी रुझान होगा ही दूसरी बात कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के लिए कार्य तो कुछ नहीं क्या परन्तु उनको इस झूठे दिलासे में अवश्य रखा की उनका हित कांग्रेस पार्टी तक ही है , प्रदेश स्तर पर यही कार्य सपा और बसपा ने भी किया जिसमे बाजी मारी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने।
विकास से कही दूर उत्तर प्रदेश जैसो राज्यों में भी जनता ने क्रांतिकारी तरीके से वोट किया। कारण मुजफ्फरपुर जैसे दंगो ने ध्रुवीकरण की ऐसी राजनीतिक शुरुआत की जो आज भी थमने का नाम नहीं ले रही। वस्तुए और विचार जब नए होते है तब वे लोगो को ज्यादा प्रभावित करते है लोग जबतक उनकी असलियत समझते है तबतक वह उनके हाथ से निकल चुका होता है। 

भारत की राजनीति में भी यही हुआ एक ओर कांग्रेस पार्टी में नित नए घोटालो की पोटली खुलती जाती थी और जनता का आक्रोश अपने परवान चढ़ते जाता दूसरी ओर ध्रुवीकरण की नकारात्मक राजनीति समाज को बांटते हुए अपने - अपने पार्टियों के वोट बैंक मजबूत करती। बीजेपी ऐसे समय में खुल कर सामने आती है और अपने आपको सच्चा हिंदूवादी पार्टी घोषित करती है क्योंकि उसे पता था अल्पसंख्यक वोट उसे कभी मिलने वाला नहीं , वह गोरक्षा , भगवा हिंदुत्ववादी मुद्दों पर अपनी राय बेहिचक रखती है जनता के लिए यह एक तरह से नई  राजनीति थी क्योंकि अभी तक सारी पार्टियों जिन मुद्दों पर चर्चा मात्र से डरती थी  बीजेपी उन मुद्दों पर काम की और खुलकर बातें करने लगी
जैसे धारा 370 , पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जोशीले भाषण, हिंदुत्व , हर साल दो करोड़ युवाओ को रोजगार ,राष्ट्रभक्ति ,सरहद पर एक के बदले दस सिर काटकर लाना ,अल्पसंख्यकों के खिलाफ बातें, किसानो की आय दुगनी करने के सपने , बुलेट ट्रेन , स्मार्ट सिटी , स्विस बैंक, काला धन , गरीबी हटाओ , पेट्रोल के दाम ,स्वच्छ गंगा मिशन ऐसे ही बातों की बड़ी लम्बी चौड़ी अनुक्रमणिका  है. और इसके साथ ही बीजेपी ने कुछ नारे भी प्रचलित करवाए जैसे सबका साथ सबका विकास , अबकी बार मोदी सरकार , हर - हर मोदी घर - घर मोदी, प्रधान सेवक  इत्यादि। 

शुरूआती दौर में जनता ने सरकार बनवाने से लेकर सरकार बनने के बाद लिए गए हर निर्णयों में मोदी सरकार का साथ दिया चाहे वो नोटबंदी हो या जीएसटी  या फिर एफडीआइ जनता को लगा की सरकार को कुछ समय अवश्य देना चाहिए परन्तु समय बीतने के साथ ही सम्पूर्ण कथानक की विषयवस्तु उसे समझ में आने लगी उसे समझ में आने   लगा की असली परेशानी उसके मुस्लिम भाइयो से बैर नहीं बल्कि इस बैर को आगामी चुनावों में एक बार फिर मुद्दा बनाने वालो से है। इन चार सालो में सरकार की यदि कोई उपलब्धि रही है तो कांग्रेस राज में बनने वाले आधार कार्ड को बैंक से लेकर सिम कार्ड , पैन कार्ड , गैस पासबुक , ड्राइविंग लाइसेंस , इत्यादि से लिंक करने की रही है। कुछ कार्य सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में भी किये है जैसे कितनी बार पैसा निकालना है कितनी बार जमा करना है , खाते में निर्धारित राशि से कम होने पर लगने वाला अर्थ दंड कितना होना चाहिए इत्यादि। 

मोदी सरकार में गरीब और गरीब होते गया और अमीर और अमीर होते गया अब इसके बारे में विस्तार से कभी फिर चर्चा होगी की कैसे। परन्तु यहाँ यह समझना आवश्यक है की सरकार का कोई भी वास्तविक एजेंडा आजतक लोगो के समझ में नहीं आया भले ही सरकार ने इसपर प्रचार स्वरुप कई हजार करोड़ क्यों न खर्च कर दिए।
लेकिन एक बात अब धीरे धीरे लोगो के समझ में आने लगी है की सरकार का भी एजेंडा विकासवादी नहीं है वरन विकास सरकार द्वारा नियंत्रित और स्वार्थी मीडिया तक ही सीमित है। बाकि मोदी सरकार ने अपने पूर्व कथित वादों में कितनो को पूरा किया और जिन राज्यों में उसकी सरकार है क्या आने वाले दिनों में वो भी पंजाब की तरह ही हाथ से निकल जायेंगे। देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अभी तक जिन राज्यों में चुनाव हुए है वहा  पूर्व में अन्य सरकारे  थी।  वैसे उप चुनावों में होने वाली हार ख़ास तौर पर गोरखपुर और फूलपुर  इशारा तो मोदी क्षरण का ही करते है।  



  


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