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भारतीय मीडिया 


भारतीय राजनीति के मौजूदा हालत में विकास कही पीछे छुटते जा रहा है , मीडिया भी जनता के मुलभुत मुद्दों सड़क ,पानी , बिजली, स्वास्थ , शिक्षा और कानून व्यवस्था की जमीनी हकीकत न दिखते हुए उन्ही खबरों को दिखाने में लगी  जिससे उसके चैनल की टीआरपी बढ़ सके क्या आने वाले दिनों में मीडिया द्वारा दिखाई गई खबरे खास तौर पर राजनीतिक मुद्दों पर आधारित कार्यक्रम अपनी प्रासंगगिकता खो बैठेंगे और मीडिया स्वार्थ सिद्धि हेतु  सम्पूर्ण रूप से राजनीतिक प्रभाव में आ जायेगा .

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मीडिया एक राजनीतिक मुहीम का हिस्सा हो गई है , मैंने न्यूज़ चैनलों पर होने वाली डिबेट की प्रासंगिकता के विषय में विस्तार से चर्चा की थी और बतलाया था की ऐसे डिबेट पूर्व प्रायोजित होते है।  इनमे पूर्व में सब निर्धारित रहता है , वैसे देखा जाये तो धीरे - धीरे जनता भी इस बात को समझने लगी है। मैंने ऊपर की पांच  लाइने एक चैनल से पूछी थी जवाब अभी तक मिला नहीं। 


भारतीय मीडिया आज विश्व मंच पर अपनी पहचान राजनीतिक चाटुकारिता के रूप में बनाती जा रही है। दिल्ली और नोएडा जैसे शहरो में प्लॉट आवंटन खुद के लिए अन्य सरकारी सुविधाएं और राजनीतिक सौदेबाजी मीडिया की प्रमुख पहचान है।  निचले स्तर पर भी पत्रकारिता मात्र थानों से लेकर विभिन्न सरकारी विभागों में दलाली का साधन बनकर रह गई है। ऐसे में निष्पक्ष पत्रकारिता कहाँ  रह जाती है जो थोड़े बहुत मीडिया कर्मी अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबा नहीं पाते उनको राजनीतिक द्धेष का शिकार होना पड़ता है तथा  सरकारी तंत्र द्वारा उन्हें अनेको माध्यम से प्रताड़ित किया जाता है। 

बाकि अक्सर चैनलों पर छाये रहने वाले पत्रकारों की अगर संपत्ति की जाँच हो जाये तो सारी हकीकत जनता के सामने आ जाएगी परन्तु ऐसा कभी संभव नहीं। यह एक बहुत आवश्यक कदम है की मीडिया से जुड़े उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की संपत्ति की निष्पक्ष रूप से जांच की जाये क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी संविधान और जनता  से बढ़कर नहीं होता। 


लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया आज बड़े बड़े उद्योग समूहों द्वारा संचालित किया जा रहा है। ऐसे में सरकार पर दबाव बनाने में और सरकार को खुश करने में मीडिया का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। 

कई खबरे तो ऐसी है जो सोशल मीडिया पर बहुतायत में प्रसारित होने पर भी मीडिया में नहीं दिखाया जाता। 
सोशल मीडिया को भी आजकल नियंत्रित करने के लिए विभिन्न राजनीतिक समूह प्रयासरत है। इस कार्य में इनके द्वारा संचालित आईटी सेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 

वैसे मीडिया की हकीकत अब जनता भी बखूबी समझने लगी है , अगर ऐसे ही चलता रहा तो चैनलों पर दिखाए जाने वाले सास - बहु के कार्यक्रम और समाचार एक ही श्रेणी में आ जायेंगे जिनमे सिवा नौटंकी के और खबरों को तोड़ मरोड़ के दिखने के सिवा कुछ और नहीं होता। 


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