raajneeti aur hum


राजनीति और हम 



अभी क्या हमेशा पढता हूँ शेर अकेला आता है और भेड़िये झुण्ड में


अगर भारतीय राजनीति के सापेक्ष बात करू तो अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की रजनीकांत द्वारा बोला गया यह डायलॉग किसके प्रशंसकों द्वारा कहा जाता है।

भारतीय राजनीत के बदलते चेहरे का एक स्वरुप आजकल सोशल मीडिया पर हावी होते जा रहा है।  जिसमे फोटो एडिटिंग से लेकर वीडियो एडिटिंग तक सब कुछ शामिल है। डायलॉग बाजी तो इसकी जान में बसती है।

नेताओ के नाम बदल कर अशोभनीय टिपण्णी करने वाला समाज , नेताओ से शिष्टाचार की उम्मीद कैसे कर सकता है। केजरुद्दीन , फेंकू , गोदी , पप्पू  जैसे शब्दों का प्रयोग  राजनीति की गिरती गरिमा को रसातल में पहुँचाने का काम करते है।

अनुयायियों का स्थान आजकल चमचो और भक्तो जैसे शब्दों ने ले लिया है। नेता लड़े या ना लड़े इनकी जंग जारी रहती है। फोटो एडिटिंग को देखकर तो कभी - कभी सच्ची तस्वीरों पर भी शक होने लगता है।

अब तो लगता है देश जैसे  पूर्ण रूप से विकसित हो चुका है , क्योंकि मुद्दों में कही विकास रहता ही नहीं।  हम बस जी रहे है भावनावो के साथ वही काफी है। चुनाव शुरू होते ही  भावनावो का बाजार  सजने लगता है।

गाय से श्रद्धा रखने वाले एक तरफ , सच्चे हिंदू एक तरफ , हनुमान जी वाले एक तरफ , देशभक्त कहलाने वाले एक तरफ  और दूसरी तरफ अपनी - अपनी जाति  वालो की लम्बी लिस्ट ,उसके बाद अल्पसंख्यकों के हितैषी एक तरफ, अब चुन लीजिये अपनी जाति  का नेता जो आपको अच्छे दिन दिखलायेगा। खामी उनसे ज्यादा कहीं ना कहीं हमारे अंदर ही है। जो विकास , बेरोजगारी , बढ़ती आबादी , कुपोषण , गरीबी , भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को छोड़कर ऐसे मुद्दों की तरफ भागते है जिनसे हमें तो कुछ नहीं मिलने वाला लेकिन इन मुद्दों को बनाने वाले सत्ता के शिखर पर पहुँच जाते है। 


समय है पहले खुद में सुधार लाने का , समय है खुद से जुड़े मुद्दों के साथ खड़े होने का , समय है मर्यादित आचरण का और समय है व्यर्थहीन मुद्दों से अपना मुख मोड़ने  का। 





song of love

प्यार के गीत 



दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे

रात ..... के साये में दिन का उजाला है
रंग ये प्रीत का कैसा तूने डाला है
हुई मतवाली मैं ,तेरे ही  सुरूर में
 रहती हूँ अब तो,  तेरे ही गुरुर में
ये कैसा इश्क़ है जिसमे ,लागे जग निराला है
राधा सी बावली मैं श्याम मेरा मतवाला है



दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे


बिन तेरे सूना दिल , अँखियो में पानी है 
यादों में मेरी , तेरी ही कहानी है 
कुछ तो सुन ले , दिल की आवाज को 
फ़िज़ाओं में बहती , मधुरिम साज को 
पिया बिन राते कैसी , कैसा दिन का उजाला है 
नीला - नीला आसमां भी , दिखे अब काला है 

दिल का उड़ता पंछी बोले ......... तेरी ही  बोली रे
अँखियो से चलती   .. .. ...  कैसी ये ठिठोली रे





construction of pauses and rites

ठहराव और संस्कारो का निर्माण 


  

ठहरना जरुरी है , भागते रहोगे तो  ठहरने का मजा क्या जानोगे


पड़ाव का अर्थ होता है कुछ दूर चलने के बाद ठहरने वाली जगह।  जिंदगी में गतिशीलता भी उतनी जरुरी है जितना की ठहराव। अगर हम बचपन से लेकर जवानी और जवानी से लेकर बचपन तक भागते ही रहे , तब हमें कैसे पता चलेगा की क्या बचपन था और क्या जवानी। बचपन कुछ वक़्त के लिए ठहर के हमें बचपना करने का मौका देता है , जहाँ तनाव के लिए कोई जगह नहीं होती।  उस बचपन की पीठ पर 10 किलो का बस्ता किसी तनाव से कम होता है क्या ।


दरअसल यह एक प्रतिस्पर्धा है की फलां का बेटा 2 साल में ही दस कविताये याद कर चुका है , और हमारा बेटा अभी तक ढंग से बोलना भी नहीं सिख पाया।  यहाँ समझना यह आवश्यक है की  बच्चो को उनकी उम्र के अनुसार ही बढ़ने देना चाहिए ,समय से पहले तो सब्जियाँ  भी अच्छी नहीं लगती । बाकी आप संस्कारो का समावेश जारी रखे तो ज्यादा बेहतर है ,बजाय इसके की उसे बिना मतलब की दौड़ में शामिल करके।  यदि इस प्रकार की नक़ल लोग बंद करना शुरू कर दे तो धीरे - धीरे सम्पूर्ण समाज में बदलाव आना शुरू हो जायेगा क्योंकि हम नकलची जो ठहरे।



संस्कार और अपनत्व की जगह क्रमशः मशीनीकरण और समय के अभाव ने ले लिया है।  बदले में जब आपके पाल बड़े होते है तो इसी मशीनी भाषा को बोलते हुए आपको समय नहीं दे पाते तो आप खीझ उठते है ।  जिन घरो में संस्कार और अपनत्व की बयार बहती है ,वहाँ के पाल्य अपने अभिभावकों को बदले में यही देते है , अब अपवाद तो हर जगह होते है।

धन से सुख तो होता है परन्तु वह भौतिक होता है परन्तु आत्मिक सुख अंदर स्थित आत्मा तक को तृप्त करता है। अपनत्व कभी भी ख़रीदा नहीं जा सकता , संस्कार एक दिन में किसी के अंदर भरे नहीं जा सकते। हमें बस अपने बच्चो को दी जाने वाली परवरिश में ध्यान रखना है की हम उन्हें कैसे समझा सकते है की धन,  गुण , संस्कार , अपनत्व  और सामाजिकता का उचित क्रम क्या होना चाहिए। 

धन की लालसा वही तक , आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति जहाँ तक। धन के लोभ के साथ - साथ इससे उत्पन्न अहंकार से भी बचने की कला आनी चाहिए। यही वर्तमान में हमारे द्वारा किये गए प्रयास भविष्य के  भारत  और  एक  स्वस्थ समाज  का निर्माण करेंगे। 


इन्हे भी पढ़े  -  

बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई                    मन , हम  और बदलता मौसम







this is not rahul gandhi's victory



यह राहुल गाँधी की जीत नहीं  - 




राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है । जहाँ छत्तीसगढ़ में इसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त है वही राजस्थान और मध्यप्रदेश में महज सीटों की आवश्यकता सरकार बनांने में पड़ेगी । इसके साथ ही हम आंकड़ों पर एक नजर डालते है जहाँ विधानसभा में मध्यप्रदेश की 230  सीटे है वही भाजपा ने 109 सीटों पर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखी और कांग्रेस 114 सीट जीतने में सफल रही । वहीँ 2 सीट मायावती, 1 सीट समाजवादी पार्टी और 4 सीटों पर निर्दलीयों ने विजय हासिल की। कांग्रेस जहा राज्य के 40.9 %  वोटरो को अपने पक्ष में करने में सफल रही वही  बीजेपी  41 % वोटरों को। ऐसे में दोनों के बीच महज .1 % वोटो का ही अंतर रहा। मध्यप्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 7 थी जहाँ पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच जीत का अंतर सिर्फ 100 से 1000 वोटो के बीच था तो क्या क्या कहेंगे ऐसे में। 

15 साल के शासन के पश्चात सत्ता विरोधी लहर का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। ऐसे में यह सत्ता विरोधी लहर महज चार सीटों और .1 प्रतिशत वोटो के अंतर से सिमट जाती है वह भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत दिए बगैर। 

क्या कह सकते है इसको की यह राज्य सरकार की नाकामी है या फिर जनता का एक  वर्ग  बस इसलिए सत्ता परिवर्तित करता है की उसे सिर्फ इतने सालो से चली आ रही  पुरानी सरकार के बदले एक नई सरकार देखने की इच्छा मात्र थी, कांग्रेस के चुनाव का कारण मात्र यह था की  विकल्प में मध्यप्रदेश जैसे राज्य में उत्तर प्रदेश और अन्य प्रदेशो की तरह कोई क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं थी।  जमीन से जुड़े लोग बताते है की अभी भी बिना चेहरे वाली कांग्रेस की अपेक्षा बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। 

 कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की अपेक्षा शिवराज सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति में  आज भी उतने विश्वसनीय और लोकप्रिय है जितना वे पहले हुआ करते थे। लड़ाई यहाँ ना राहुल गाँधी और मोदी में थी ना कांग्रेस और भाजपा में ,लड़ाई सिर्फ 15 साल पुरानी सरकार को सिर्फ स्वाभाविक तौर पर जनता द्वारा बदलने की मानसिकता की थी। जिसे सम्पूर्ण जनता ने तो नहीं स्वीकार किया लेकिन कुछ ने माना की एक बार किसी अन्य को मौका इसलिए दिया जाए ताकि सत्ता का हस्तांतरण होता रहे।  

अब बारी राजस्थान की -  राजस्थान  का हाल तो वैसे भी  किसी से नहीं छुपा।  यहाँ लगातार दो बार सरकार बनाना यानि जनता को इस परिस्थिति में ला देना की वह इस मिथक को तोड़ सकती है लगभग असंभव है। फिर भी आंकड़ों पर गौर करना बेहद जरुरी है। 

यहाँ भी कांग्रेस अपने बलबूते सरकार बनांने की स्थिति में नहीं है। लेकिन ढिंढोरा पीटा जा रहा है की राहुल गाँधी की लहर शुरू हो चुकी है। 49. 5 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस यहाँ 99 सीटे जीतने में कामयाब रही है। हालाँकि सरकार बनाने के लिए उसे दो सीटों की और आवश्यकता होगी परन्तु बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी  द्वारा कांग्रेस को समर्थन की घोषणा के बाद दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। 

दरअसल लड़ाई यहाँ भी मोदी और राहुल गाँधी की नहीं बल्कि यहाँ की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और जनता के बीच थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला ।  200 सीटों की  विधानसभा  वाली यहाँ की जनता ने इसके बावजूद बीजेपी की झोली में 36.5 प्रतिशत वोटो के साथ 73 सीटे डाल दी। जनता द्वारा दिए गए नारो से इस लड़ाई को साफ़ समझा जा सकता है।  " मोदी जी से वैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं "   , "After 8 PM no CM  "यानि आठ बजे रात्रि के बाद यह मुख्यमंत्री नहीं रहती। नाराजगी काम से ज्यादा वसुंधरा के व्यवहार से थी जनता कभी भी उन्हें अपने बीच नहीं पाती , जिस वजह से अपने मुख्यमंत्री से उसका जुड़ाव ख़त्म हो चुका था ।  

ऐसे में अगर भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद हेतु किसी अन्य प्रत्याशी को उतरा जाता तो परिणाम कुछ और ही होते। इस कारण राजस्थान में मिली जीत राहुल गाँधी की जीत नहीं बल्कि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की हार थी। 


अब आते है छत्तीसगढ़ की तरफ -  गरीबी और अशिक्षा से जूझता यह राज्य 15 सालो से भाजपा द्वारा शासित था कहानी कुछ मध्य प्रदेश जैसी ही थी , परन्तु यंहा कांग्रेस का सिर्फ एक चुनावी वादा दस दिनों में कर्जमाफी का ने कहानी में बड़ा अंतर ला दिया फलस्वरूप खेती किसानी और आदिवासी बहुल वाले  इस राज्य ने  75.6 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस को 68 और 16.7 प्रतिशत वोटो के साथ भाजपा को महज 15 सीटों पर ला दिया। 


इन सारे रुझानों में कही भी राहुल गाँधी के व्यक्तित्व की चर्चा नहीं होती। अगर उनका कोई योगदान है तो वह सिर्फ एक ही है और वो है की राजस्थान में सचिन पायलट तथा अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओ  का उनकी पार्टी में होना।  अगर इसे 2019 के लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है तो यह बिल्कुल सही है , परन्तु आवश्यक है इन परिणामो को बारीकी से समझना, आंकड़ों में जनता के सवालो और जवाबो को ढूंढना क्योंकि विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनावों में जनता का मत और मुद्दे दोनों ही अलग - अलग होते  है। 

राहुल गाँधी के लिए आवश्यक है की वे स्वयं के बलबूते ऐसी लड़ाई जीतकर दिखाए जिसमे उनकी सीधी टक्कर मोदी से हो नाकि सत्ता विरोधी थोड़ी सी लहर को मिडिया द्वारा प्रचारित राहुल उदय समझने की भूल करना। नहीं तो मिजोरम  में  सत्ता हाथ से जाना और तेलांगना जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में इसकी बुरी गति का होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है की बाकि के तीन राज्यों में कांग्रेस का चुनाव जीतना महज सत्ता और राज्य के नेता विरोधी रुझान के सिवा कुछ नहीं। 


भाजपा के लिए भी यह आवश्यक है की वह जनता की नब्ज समझे और मंदिर , गाय, हनुमान  जैसे  अनावश्यक मुद्दों को ज्यादा तरहीज ना दे क्योंकि तमाम तरह की  दुश्वारियों और कठिनाइयों से परेशान इस देश की जनता इस तरह के मुद्दों से अब ज्यादा प्रभावित नहीं होती । बल्कि रोजगार , सड़क , बिजली ,पानी तथा स्थानीय मुद्दे ही उसके लिए प्रमुख होते है।

 बाकी यह पब्लिक है सब जानती है। 





kambakht neend

कम्बख्त नींद




कुछ करने की सोचूं तो कम्बख्त नींद आने लगती है
नींद जब आती है, तो वो सताने लगती है
उसको जो भगाता हूँ तो, जाग जाता हूँ
जाग जब जाता हूँ तो, उसे बुलाता हूँ
उसे जब बुलाता हूँ ,तब वो नहीं आती है
वो भी गई नींद भी गई, सोचूं कुछ कर ही लेता हूँ
और कुछ करने की सोचूं तो ........



mind we and the changing season



मन , हम  और बदलता मौसम 


mind we and the changing season



नौकरी का झमेला और शहरो में परिवार चलाने की कशमकश में मन हमेशा इसी उधेड़बुन में लगा रहता है की, क्या वह समय भी आएगा जब घडी की सुइयों में  9 - 6  के बीच खून और दिमाग दोनों को जलाने के बाद  तनाव रहित फुर्सत के पल  इस शरीर में वास करने वाली आत्मा को भी  मिल पायेगा। 

शरीर तो चूँकि एक ऐसी  मशीन बन चुकी  है जो की धन को साधने हेतु  होने वाली प्रक्रिया से नियंत्रित होती  है। भावनावो के विसर्जन के फलस्वरूप ही प्रभु प्रदत्त काया का ऐसा विनिर्माण संभव हुआ है जिसमे प्रभु भी आस्था का माध्यम ना होकर दिखावटी  फैशन का नया आयाम बन चुके है।  समय के साथ  मनुष्यो ने एक नई संस्कृति का विकास कर लिया है जिसको हम दोहरे आचरण के रूप में जानते है।

पहला  चरण  वाह्य चरण का है , जिसमे वह अपनी ऐसी काया का निर्माण करता है जोकि सामाजिक रूप से जानी जाये ( केवल पहचानी जाए )  नाकि वह कार्यसंगत हो। 

दूसरा चरण अंदरूनी चरण है जोकि मनुष्य का वास्तविक स्वरुप है और इसको ज्ञात करना ब्रह्मा  के पेट के रहस्य को ज्ञात करने से ज्यादा दुष्कर है। और सारे कार्य इसी चरण के अनुसार क्रियाशील होते है। 

पेट के  पापी होने के  सवाल की लम्बाई अब पापी मन तक बढ़ चुकी है।  पापी मन को अब पेट भरने के साथ - साथ अन्य कई कार्यो में लगना पड़ता है। जावेद हबीब के सैलून  से लेकर मैकडोनाल्ड  के बर्गर तक और एप्पल से लेकर फ्लिपकार्ट के फैशन तक  ना जाने पापी मन कहाँ - कहाँ तक पहुँच चुका है । 


कुछ सीधे सादे मन अभी भी 20 - 30  रूपये में दाढ़ी  और बाल बनवाने के बाद नाक और मूंछ के बाल कटवाना नहीं भूलते। हालंकि इस प्रकार के मन, छोटे शहरो और गांव की दहलीज को पार करना ठीक उसी प्रकार समझते है  जैसे बाबर हिन्दुस्तान के वैभव को देखकर यंहा खिंचा तो जरूर चला आया था, परन्तु  इस बात से अनजान था की  गैर मुल्क में उसकी हैसियत एक खानाबदोश के सिवा कुछ नहीं। 

ये मन अभी भी इस बात पर यकीं करते है की चौराहे की वह  सियासत जिसमे धनिया की चटनी के साथ  गरमागरम गोभी और प्याज के पकौड़े  हो ,का मुकाबला नौटंकी से दिखने वाले  न्यूज़ चैनलों के कानफाडू डिबेट कभी  नहीं कर सकते  जिसमे एंकर कॉफी की चुस्की के साथ दी गई स्क्रिप्ट को अमल करवाने का प्रयास करते है । 

खुद को धुरंधर समझने वाले संबित पात्रा से लेकर राजबब्बर तक  और प्रियंका चतुर्वेदी से लेकर सुधांशु द्धिवेदी तक के पास उनके सवालों के जवाब मिलना नामुमकिन है। पकौड़ी के बाद मिट्टी के  भरूके में मिलने वाली चाय, सभा के अंतिम चरण का ईशारा करती  है।  जिसके साथ ही घरेलु समस्याओ के निराकरण की व्यवस्था पर चर्चा होती है । फैशन के नाम पर मिश्रा जी के  नए कुर्ते का रंग और शर्मा जी के नए चश्मे के सजीले फ्रेम पर कुछ चर्चा ठिठोली स्वरुप अवश्य हो जाती है। इन सब के बीच तनाव रूपी खरपतवार के वह  बीज जिनकी बड़े शहरो में पूरी फसल पक कर तैयार रहती है ,के कही भी अंकुरित होने की गुंजाईश नहीं रहती। 

उधर पापी मन शाम को थकेहारे शरीर के साथ झूलता चौखट में प्रवेश करता है , और आरामदायक कुर्सी पर गिरते उम्मीद करता है की कहीं से एक प्याली चाय की मिल जाये ।  कहीं से इसलिए क्योंकि घर की एकलौती महिला सदस्य भी  इस देश की कार्यशील वर्ग में शामिल हो चुकी होती है ।  दोस्तों के नाम पर कुछ स्वार्थसिद्ध लोगो के समूह से  चर्चा  या विमर्श हेतु समय माँगना यानी ना सुनना  । मनोरंजन हेतु  टेलीविजन के माध्यम से समाचार सुनना और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को सुनना कुछ एक सा लगता है। डिबेट में तो सारे तथ्य(औचित्यहीन ) निकलकर सामने आ जाते है सिवा निष्कर्ष के। 

अंत में शरीर को धकेलते हुए रसोई की चौखट में प्रवेश कर चाय बनाते हुए जीवन के इस एकाकी स्वरुप में भी उसे समझ में नहीं आता की क्या वह जिंदगी को जी रहा है या फिर मशीन बनने के उस अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है जहाँ से उसका वापस आना असंभव है। 

  
इन्हे भी पढ़े - 

बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई  


rahul gandhi and chanaky neeti


राहुल गाँधी और चाणक्य नीति 


rahul gandhi and chanaky neeti


चाणक्य ने कहा था की  किसी विदेशी महिला की कोख से उत्पन्न संतान उस देश का हित  कभी नहीं सोच सकती । 

राहुल गाँधी कांग्रेस का वो चेहरा है जिसे राजनीति में नहीं होना चाहिए था। परन्तु वंशवाद और गाँधी परिवार के सदस्य होने के नाते वह स्वाभाविक तौर पर पार्टी की कमान सँभालने के योग्य है। हालांकि पार्टी में योग्य नेताओ की कमी बिलकुल भी नहीं है , परन्तु उनके पास  गाँधी परिवार का जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। इस कारण वे सिर्फ परिवार से वफादारी दिखाकर दूध के ऊपर की मलाई खाने में ही मगन है। 

एक कल्पना आप भी कीजिये की यदि अमेरिका जैसे देश की कमान वहां पर बहु बनी आपकी माँ के पास आ जाये तो वे क्या करेंगी।  क्या वे पूर्ण रूप से उस देश  की प्रगति के लिए कार्य कर पाएंगी या फिर अपने मूल देश के उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बनेंगी।  क्या वे अमेरिका जैसे देश की जमीनी हकीकत समझ पाएंगी , जबकि वे जन्म से लेकर युवावस्था तक भारत की संस्कृति और परिवेश में पली - बढ़ी होंगी । इन सबके बाद भी सम्भावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता की वे अमेरिका जैसे देश को आगे बढ़ाने का काम करती यदि उनकी नियत, धर्म , वहाँ के परिवार की कार्यशैली और जन्म से मिलने वाले संस्कार उत्तम कोटि के होते , और उनका मूल देश भारत होता ना कि इटली जैसा वह  देश जिसके नाविक तक भारतीय मछुआरों की बिना वजह हत्या कर देते है। 

राहुल गांधी  इस तथ्य को नकार नहीं सकते की वे पूर्ण रूप से भारतीय नस्ल के नहीं  है। उनका जुड़ाव आज भी इटली से है ,बोफोर्स के क्वात्रोची  से लेकर वाड्रा  तक उनके विदेशी और धार्मिक पक्ष को मजबूती से बयां करते है । क्वात्रोची की प्रधानमंत्री आवास से लेकर कार्यालय तक बेरोकटोक आवाजाही किसी से छिपी नहीं थी ।  उसी प्रकार राबर्ट वाड्रा  का बिना किसी पद के  सिर्फ  परिवार के बूते वीवीआईपी  बनना भी  कांग्रेस सरकार में  एक आम बात थी । 

फिलहाल राहुल गाँधी अपने गोत्र से लेकर उपनाम तक के सन्दर्भ में सुर्खियों में रहने वाले है।  इतिहास सिर्फ पढ़ा जा सकता है उसे बदला नहीं जा सकता ,और नाही उसे झुठलाया जा सकता है।  खुद को नाना के गोत्र का बताने वाले राहुल गाँधी यह भूल जाते है की यदि गोत्र माँ के पक्ष का लिया जाता तो उनकी माँ को सर्वप्रथम हिन्दू धर्म स्वीकार करना पड़ता।  यदि दादा के पक्ष का लिया जाता तो पारसियों का कोई गोत्र नहीं होता। 

यहाँ इन सारे तथ्यों की चर्चा आवश्यक इसलिए है की भारतीय इतिहास के सबसे ज्ञानी और विद्वान पुरुष चाणक्य की उस उक्ति को झूठलान जिसमे उन्होंने कहा था की -


"विदेशी माँ की कोख से उत्पन्न संतान कभी इस देश का भला नहीं सोच सकती  "

इस देश को  रसातल में पहुंचा सकता है और इसके देशवासियो को भिखारी। 



Princes and country


शहजादा और देश 


  Princes and country


वंशवाद की बेली में 
एक फूल खिला है, हवेली में 
बेला , गुलाब,गुड़हल  और गेंदा 
विलक्षण फूल, नहीं इन जैसा 

मात  करे हर पल रखवाली 
हो ना पूत ,कही मवाली 
पाणी को ग्रहण करे ना 
अधेड़ उम्र का ,बालक सयाना 

राजतिलक को चिंतित माता 
बुझे , इसको कुछ नहीं आता 
जनता के हास्य का साधन

माने खुद को सच्चा बाभन  


चाटुकारो की कथा का नायक 
राजनीति के यह नहीं लायक 
चले जब गुजरात की  आंधी 

संभल ना पावे नकली गांधी 


देशहित में इसे नकारो 
स्वदेशी से देश संवारो 
भूल हुई गर यदि तुमसे 
लूटेगा देश  , एक बार फिरसे 



preperation of 2019


2019 की तैयारी (व्यंग )



2019  में होने वाले उल्लूसभा  की तैयारी जोरो से शुरू हो चुकी है।  हर तरफ कलियुग के पुण्यात्माओं द्वारा प्रवचनों की बाढ़ आई हुई है।  अभी कल ही एक थो महाराज टीवी पर अपनी पार्टी की मालकिन को भला बुरा कहने पर विरोधी प्रवक्ता का टेटुआ दबा रहे थे। एंकर से लेकर कैमरा मैन तक सब उनको पकड़ने में धराशायी हो गए  बड़ी मुश्किल से उनकी (प्रवक्ता ) जान बची।  लेकिन वो(प्रवक्ता ) भी अपनी आदत से मजबूर थे जाते जाते चिकोटी काट के चले गए।


टीवी पर देखा की एक जगह  एक प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए जादू का खेल दिखा रहे थे।  लेकिन इसमें नया क्या था आज कागज से कबूतर बना रहे है और पहले भी कागज पर सड़के , नहर , अस्पताल और स्कूल बनवाया करते थे। फिर जैसे कबूतर को गायब कर देते वैसे ही ये सब भी गायब हो जाते।

इधर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। सफ़ेद कुर्ता वाला बालक भी हाथ में हवाई जहाज लिए उड़ने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी उड़ान के चक्कर में कई बार नाक के बल गिर भी चुका है।  बड़े साइज का पैजामा और कुर्ता होने की वजह से कुर्ता हाथ की उंगलियों को भी ढँक लेता है जिस कारण उसे बार - बार खींचकर वापस लाना पड़ता है।

राजस्थान , और मध्यप्रदेश में मीडिया द्वारा प्रत्याशियों को कौन बनेगा मुख्यमंत्री का खेल खिलाया जा रहा है , जिसे की 2019 के उल्लू सभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसी बहाने इन प्रदेशो के छोटे जिले भी राष्ट्रिय  मीडिया में छाए हुए है । कल तक जैसे चैनलों के एंकर ,आजकल ,पत्रकारिता के अलावा सब कुछ करते देखे जा सकते है ।  मजा तब और बढ़ जाता है जब इन चैनलों पर होने वाली बहस में भैंस , बकरी से लेकर सब कुछ हो जाता है।

वैसे अभी दूर - दूर तक 2014 के चुनावों की तरह कहीं से भी गोला फेंकने की खबर नहीं आई है , आम आदमी भी ख़ास बनने के बाद बस धक्कामुक्की करने में लगा हुआ है हालाँकि इसी चक्कर में उसे मिर्च भी लग चुकी है । गरीब जनता बस अमीर दिल से तमाशा देखे जा रही है।



mandir and ram



मंदिर और राम 



mandir and ram

रामलला  मंदिर  में कब बैठेंगे, वो भी ना जाने
पूछ रहे है हम से अब वे 
बोलो किसको हितैषी माने

है बारिश में चूता  त्रिपाल
देखके रोये है महाकाल
लक्ष्मण दुखी देख भाई का हाल
बीत गए ना जाने कितने साल  

सीता बोली सर पे जब छत नहीं
जीता लंका पर कौनो गत के नहीं
बोलो भरी गर्मी में क्या ,लू  को सह  पाओगे
तब भटके थे वन - वन  में इधर - उधर
इस कलियुग में भी क्या, अच्छे दिन ना दिखलाओगे

थे  वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बोले बात नहीं ये आम
रावण के दस मुख थे बाहर
अंदर यहाँ सबके लालच के जाम
कुछ  धैर्य  धरो  देखो इस जग को
अभी कितना मुझे सतायेंगे
पूछो तो कहते है अब  ये , रामलला हम आएंगे

मुझसे चलता ये जग सारा , फिर भी फिरू मारा - मारा
तकदीर ऐसी खुद ही  लिखवाई है
ठंडी शुरू हुई सीते  ,देखो घर में कहीं रजाई है
ब्रम्हा जी तो बोल रहे थे , कलियुग में प्रभु बस पत्थर की मूरत है
अयोध्या को  राम की नहीं, राजनीति की जरुरत है


तुम रक्षक पर रक्षा को तुम्हारी
पूरी मानव की फौज खड़ी
जय - जय - जय बजरंग बलि
अब ना तोड़ोगे दुश्मन की नली
लंका नहीं जो आग लगा दो
गोवर्धन को तुम हिला दो
कलियुग के सब रावण सारे 
अपनी पूंछ बचाओ प्यारे 

मंदिर - मंदिर , भक्त कहे 
मन के मंदिर में बस छल रहे 
है प्रपंच ये बड़ा निराला 
मंदिर बनवाने चले है आला 
खुद राजा खुद ही फरियादी 
हँसे भगवन, हुए अब आदि 

अपना छत सारा आकाश 
सरयु  से बुझती अब प्यास 
मंदिर की अब  किनसे  आस 
मंदिर  जब  सत्ता की साँस 

ना बने तो मत बनवाओ 
नाम पे मेरे  मत रबड़ी  खावो 
है आना तुमको मेरे पास  
पूछूंगा तुमसे, क्यों की इतनी बकवास 

दुखी भाव से रायजी, अब तो बस ये कह चले 
ना हो हिंसा उनके नाम पे , मर्यादा में ये जग चले



New winding flowing in big cities

बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई 


 New winding flowing in big cities


रिश्तो की मौलिकता के साथ ही महसूस होने वाला अपनापन, बड़े शहरो में बदली हुई परिभाषा के साथ स्वार्थ , पैसा और हित  साधने के एक माध्यम के अलावा कुछ और नहीं।  बड़े शहरो का छोटापन और छोटे शहरो का बड़प्पन   इसकी संवेदनशीलता को  बखूबी बयां करते है। 

मशीनी मानव के पास इतना समय ही कहा की वो दिल से सोच पाए। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर की भागमभाग में निकलती जिंदगी के पास जब थोड़ा समय होता है तो वह थके हुए शरीर को राहत देने में निकल जाता है।  अगर कुछ समय  बच गया तो परिवार ,जिसमे सिर्फ बीवी और बच्चे शामिल होते है उनके हिस्से चला जाता है।

ख़ुशियों का पता अब नए - नए पिकनिक स्पॉट , मॉल , रेस्त्रां , फॉरेन ट्रिप , सिनेमा और मोबाईल ने ले लिया है। दादा - दादी और नाना - नानी की कहानियो को  छोड़िये, अब तो इनकी स्वयं की कहानी ही हर घर में मार्मिक होते जा रही है।   लाइफ इन ए मेट्रो और बॉलीवुड की अन्य फिल्मो में बड़े शहरो की सच्चाई अभी उतनी ही दर्शाई गई है जितनी तीन घंटे की फिल्मो  में दिखाई जा सकती है। असल में किस्सा उससे कही आगे बढ़ चुका है।  

रास्ते से लेकर नाश्ते की टेबल तक में ही  इंसान  का धैर्य उसके साथ नहीं रह पाता ,उसे तो बात - बात पर धैर्य खोने की आदत सी पड़ गई है। वह इतना धैर्य कहाँ रख पायेगा की बूढी  माँ जब तक अपनी व्यथा उससे कहे तब - तक वह बैठकर सुनता रहे। 

भारतीय संस्कारो की तिलांजलि(त्याग)  देकर पाश्चात्य सभ्यता का दामन थामना ठीक उसी प्रकार है जैसे पिता को डैडी और माँ को मॉम में बदलना। जिस प्रकार का लाभ  रोटी की जगह पिज्जा खाने से मिलता है उसी प्रकार का लाभ पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने से मिलता है। 


ना अब आप किसी से मजाक कर सकते है , ना अपने दिल की बात को बाहर कर सकते है , अगर आपने ऐसा कर दिया तो आप खुद ही मजाक बन जाएंगे।  एक शब्द है ढीठ जितनी जल्दी इसकी परिभाषा समझ कर इसे अपना ले उतनी जल्दी आशा है की आप भी इस बहने वाले नए बयार में अपनी जगह बना लेंगे। 

छोटे शहरो और गांवो ने ही आज भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की लौ जलाये रखी है। परन्तु वहां के मौसम में  भी पाश्चात्य सभ्यता की हवा के झोंके देखे जा सकते  है। ऊँची एड़ी की सैंडिल पर संभल कर चलती छोटी लड़कियां , बीयर की शॉप पर मॉडल लड़के ,पाउच वाली सेल्फी ,डूड और ब्रो जैसे शब्दों के साथ ही फेसबुक और व्हाट्सअप पर अपडेट होती स्टेटस को देखकर लगता है वह दिन दूर नहीं जब वीडियो कॉलिंग से ही बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधेगी और बेटा आजकल के कथित प्रेम विवाह के बाद फेसबुक पर फोटो लगाकर माँ - बाप और दूसरे रिश्तेदारों को टैग करेगा। 



discussion

बहस 


टीटी  - टिकट दिखाइए प्लीज। 

ऊपर की बर्थ  पर सोये हुए आदमी को जगाते हुए टीटी कहता है।  इसके साथ ही अन्य लोग बिना कहे ही अपने - अपने टिकटों को ऐसे ढूंढते है जैसे दो हजार की गड्डी छिपाकर रखी हो। 

गुवाहाटी से जम्मू जाने वाली ट्रेन में आज भीड़ कुछ ज्यादा ही थी।  कारण छठ की छुट्टियों के बाद लोगो की वापसी का सिलसिला जारी था। 

ट्रेन के अंदर चर्चाओ का बाजार राजनीति के प्रोडक्ट पर कुछ ज्यादा ही गर्म हो चुका था।  नीचे की सीट पर बैठे चार सज्जन अपने - अपने विचारो के साथ जंग जीतने की पूरी कोशिश कर रहे थे। 

मूंछ वाले एक भाई साहब देश में एक बार फिर वर्तमान सरकार चाहते थे  जबकि उनके सामने बैठे सज्जन जो की खैनी ठोकने के साथ ही चर्चा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे सरकार के  नोटबंदी  वाले फैसले से काफी दुखी थे और चाहते थे की इस बार विपक्षी दल की सरकार  बने।  हालांकि उनकी खैनी से दिक्कत तो सबको थी लेकिन विषय की महत्ता को देखते हुए  सब अनदेखा कर रहे थे। 

मूंछ वाले भाई साहब  - देखिये मैं आपसे कह देता हूँ  वर्तमान सरकार से ईमानदार सरकार आज तक देश में नहीं आई है। 

दूसरा व्यक्ति - ऐसा ना कहिये सरकार अपने किये कई वादों में असफल भी रही है। 

तीसरा -  आप ही बताइये इतने बड़े मुल्क की समस्या क्या कुछ सालो में हल की जा सकती है। कम से कम सरकार सही राह पर तो चल रही है पूर्वर्ती सरकारों की तरह देश को लूटा तो नहीं जा रहा है । 

खैनी वाले भाई साहब - 'ऐसा ना कहे ' सरकार जब सत्ता से हटती है तब उनकी पोल खुलती है।  बैंको में लाइन लगवा दिया , कई लोगो के ब्लड प्रेशर बढ़ गए और कई लोग ऊपर की ओर  रास्ता नाप लिए। 

मूंछ वाले - अरे तो जिनमे सामर्थ्य नहीं थी वे फिर लाइनों में लगे ही क्यों ?  उसके बाद के चुनावों में फिर जनता ने सरकार का समर्थन क्यों किया ? सब विपक्ष की चाल है वह सत्ता से ज्यादा दूरी बनाकर नहीं रह सकता। उसे बिना घोटालो के घोटाला दिखता है। 

दूसरा व्यक्ति  - परन्तु आजादी के बाद से हुआ विकास आपको नहीं दिखता।  कम्प्यूटर से लेकर शिक्षा संस्थान तक सब पूर्वर्ती सरकार की ही  तो देन है। 

मूंछ वाले भाई साहब   -  हां दिखता है , जातियों में जाति इतने सालो से बढ़ती गई वो दिखता है , अन्य देश कहा से कहा पहुँच गए और हम अभी प्राइमरी की पाठशाला तक नहीं पास कर सके। आईआईटी बने लेकिन उच्च कोटि के मानव जो बना सके ऐसे संस्थान क्यों नहीं बनाई आपकी सरकारों ने । गरीब तब भी थे गरीब अब भी है  शोषित तब भी थे शोषित  अब भी  है । 

कुछ देर सन्नाटे के बाद

खैनी वाले भाई साहब  -  सही कहा आपने भाई साहब  लड़ते तो हम है आपस में , वे तो परदे के पीछे हम पे हँसते है।  लाइन में तो हम लगते है , भरी गर्मी में पूरे  - पूरे  दिन बिजली गुल होने का दंश तो हमने झेला है। सब्जी महँगी हुई तो बाजार पैदल ही चल दिए , पेट्रोल महंगा हुआ तो ऑफिस बस से जाने लगे , कर्फ्यू लगा तो घरो में कैद हो गए  , सीमा पर हमने अपने बेटो की कुर्बानी दी , दंगो में हमारे भाई मारे गए। फिर भी हमे समझ नहीं आई की सब सत्ता का खेल है। 

दूसरा व्यक्ति - उनकी कोठियों की कीमते बढ़ते गई , हमारी ही जमीने हमसे ले ली गई , वे कहते है मुआवजा तो अच्छा दे रहे है , अब आप ही बताइये कौन अपनी माँ को बेचकर मुआवजा चाहेगा। 
बात बात पर कहते है की पकिस्तान को करारा जवाब देंगे।  कब देंगे ?, और इनके जवाब होते कैसे है जो नापाक को समझ में नहीं आता।  पूछिए उस माँ से जिसने अपने बुढ़ापे की लाठी खोई है , पूछिए उस लड़की से जिसका सुहाग चंद दिनों में ही उजड़ गया। कहते है करारा जवाब देंगे  ..... ...... .... ..  

ट्रेन पूरे रफ़्तार में थी और उसके अंदर चलने वाली बहस भी। 




  

shaheed

शहीद 




चढ़ गए सीने पे ,जो वे
दुश्मनो के होश उड़ गए
जीत के जंग देखो कैसे ,बन गए है वे सिकंदर

आग भी बुझ जाती उनके , ह्रदय की ज्वाला को देखकर
वीरो की धरती है ये ,भगत सिंह सबके दिल के अंदर

कारगिल की चोटियों पे, गूंजती है उनकी ही कहानियाँ
किस्से कुछ उनकी वीरता के, सुनाती है बूढी नानियाँ



shaheed


गोलियों से होके  छलनी, लाल फिर भी आगे बढ़ चला
छोड़ दे कैसे उन्हें जो, माँ को उसकी नोचने है चला
बंद होती आँखों से भी ,अचूक  निशाना लगाता  वो भला
आखिरी सांस तक भी, फर्ज पूरा करता चला

माँ को गर्व ऐसे लाल पे, जिसको उसने है जना
भाई बोलो दुश्मनो की टोलिया , बतलाओ बची है कहाँ
हिमालय सी मजबूत छाती बुलंद हौंसले है यहाँ 
तिरंगे को दे सलामी बाप गर्व से है खड़ा 
बहन जिसकी बाँधी राखी , देश रक्षा के काम आई 
दुश्मनो का सीना चीरते ,शहीद हुआ उसका भाई 

गर्व ऐसे भाइयो पे, जिनकी माता भारती 
पूजा की थाल में जो, दुश्मनो के शीश लाये 
वे है जिनसे देश चलता , हम करे उनकी आरती 
ऐसे वीर सपूतो को देखकर ही , शान से तिरंगा लहराए 



politics of religion



धर्म की राजनीति 







यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥


भगवन श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है की जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं धरती पर दुष्टो का संहार करने के लिए जन्म लेता रहूँगा। 

भारत के वर्तमान राजनीति परिदृश्य में आप धर्म और राजनीति को अलग करके नहीं देख सकते।  पहले धर्म सिर्फ उपासना का माध्यम हुआ करती थी परन्तु समय के साथ भारतीय इतिहास काल के मध्य से धर्म की राजनीति होने लगी , धर्म का प्रसार और धर्म की रक्षा ही प्रमुख मुद्दे रहे। 

अगर आपको किसी धर्म से लोगो की मानसिकता हटानी है तब आप उस धर्म के मूल पर प्रहार कर सकते है।  कांग्रेस ने अपने शासन काल में हिन्दुस्तान के प्रमुख हिन्दू धर्म के मूल पर प्रहार करना शुरू किया।  किस देश का शासक अपने राज्य के धर्म को कमजोर करता है ? यदि वह उस धर्म को नहीं मानता तभी ऐसा संभव है। 



राम सेतु 


कांग्रेस ने रामसेतु  को मानने से इंकार किया , उस राम सेतु को जिसकी प्रमाणिकता अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। जिसके साथ ही रामायण के पात्रो पर संदेह नहीं किया जा सकता ,परन्तु कांग्रेस काल में उनपर भी संदेह किया गया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिया न्यायालय पहुंचे। 

हिन्दू धर्म के प्रमुख रंग को ही संदेह की दृष्टि दी गई और उसके लिए एक नए शब्द का अविष्कार कांग्रेस ने कर डाला भगवा आतंकवाद  इसके साथ ही निर्दोष हिन्दुओ को झूठे मुकदमो में फंसाकर जेल में डालने का कार्य शुरू हुआ ताकि इस शब्द की परिभाषा के साथ इसकी प्रयोगात्मक स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। 

भगवान् राम के जिस मंदिर पर मुग़ल आक्रमणकारी बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पुष्टि होने के बाद भी कांग्रेस ने इस सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाया। 

हिन्दू और हिन्दू धर्म एक मानवतावादी धर्म रहा है इसने कभी किसी का विरोध नहीं किया।  परन्तु एक बहुसंख्य आबादी वाले धर्म को कांग्रेस द्वारा परदे के पीछे से उत्पीड़ित करने के बाद इस आबादी ने नए सिरे से विचार करना प्रारम्भ किया तथा  स्प्रिंग के सामान दबाये जाने के बाद इस बहुसंख्य आबादी ने धर्म की रक्षा हेतु छलांग लगाना शुरू किया और एक हिंदूवादी पार्टी भाजपा को इस देश की कमान सौंपी। 

समय के साथ ही केंद्र में स्थापित बीजेपी सरकार ने हिन्दू हितो को सुरक्षित किया जिससे हिन्दुओ की आस्था पार्टी के साथ बढ़ी। 

जाति की राजनीति से ऊपर उठकर शुरू हुई इस धर्म की राजनीति में कांग्रेस मौके की नजाकत को समझते हुए अपने ऊपर लगे धब्बे को छुड़ाने हेतु चोला बदलने के प्रयास में लग गई और इसके मुखिया कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर बैठे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश के चुनावी पोस्टरों में शिव भक्त के रूप में देखे गए। भक्ति के नए नए आयामों द्वारा कांग्रेस को भी हिंदूवादी पार्टी बताने के प्रयास जारी है। आगामी चुनावों में भागवान के इस नए भक्त और उसकी पार्टी की कड़ी परीक्षा होने वाली  है। 

2019 के चुनावों में गर्माते राम मंदिर के मुद्दे के साथ ही एक बार फिर धर्म की राजनीति होने की संभावना है। जहाँ विजय श्री उसी को मिलनेवाली है जो राम और काम दोनों में स्वयं को सिद्ध कर सके। 







dhanteras deepawali and family


धनतेरस , दीपावली और परिवार 

dhanteras deepawali and family



धनतेरस की सुबह से  ही  भौजाई  पूरे मूड में थी , घर के आँगन में जोर - जोर से उनके चिल्लाने  की आवाज आ रही थी  - 

'  बस अब बहुत हो गया इस रोज - रोज की  किचकिच से तो अच्छा है की हम अलगे हो जाये , जब से इस घर में आएं है तब से सुख का एक्को  दाना भी नहीं खाये है , कहा तो मायके में चार - चार लौड़ी लगी रहती थी  और इंहा खुद लौड़ी बनना पड़ रहा है '

 ' एक तो  हमरे मर्द की कमाई से पूरा घर चलता है ऊपर से छोटका से लेकर इस घर के बड़का तक  इंहा सब रोआबे  में रहते है. ........  अब बस बहुत हो गया अब  हम अलग हुए बिना नहीं मानेंगे नहीं तो इसी आँगन में हमारी समाधी बनेगी  और इस बरस की  दीवाली  सबको याद रहेगी  ....... और आप भी कान खोल के सुन लीजिये  ई सब जो आपसे लगाव दिखाते है। ... ई आपसे नहीं आपकी कमाई  से लगाव रखते है ' . 

क्या - क्या अरमान लेकर हम इस घर में आये थे।  हमारे माँ - बाप भी इहे सोच कर बियाह किये थे की लड़का सरकारी नौकरी में है लड़की हमारी राज करेगी , पर इंहा तो कोई और ही राज कर रहा है 

कान खोलकर सुन लीजिये आज बिना फैसला के हम नहीं मानने वाले 

आपको तो पति कहने में भी शर्म लगता है जो अपनी पत्नी को सुखी नहीं रख सकता  

बेचारे सास और ससुर अपने कमरे में एक दुसरे के  चेहरे को देखते हुए  बहु की बाते सुन रहे थे  किसी तरह की गलती ना होते हुए भी उन्हें अपने आप पर ग्लानि हो रही थी की आखिर कहाँ उनके फर्ज में कमी रह गई की हालात यहाँ तक बिगड़ गए।  उन्होंने तो सदैव बहु को बेटी की तरह ही  समझा था  भरसक कोशिश की थी की  कभी उसे अपने मायके की याद ना  आये।  बूढी और मधुमेह की रोगी सास भी बहु के बीमार रहने पर  उसकी तीमारदारी में दिन रात एक कर दिया करती थी । 

 मायके वाले तो बस मोबाईल का झुनझुना बजाकर  समाचार ले लिया करते थे। फोन पर सहानुभूति के साथ  विमर्श तो ऐसे दिया करते थे जैसे उनके फोन के बिना उनकी बिटिया की बिमारी ना छूटती । सढ़ूआने से लेकर  मौसिआने तक  चाची  , बुआ , भाभी और चचेरी बहनो के फोन की बाढ़ आ जाती थी लेकिन साल बीतने पर भी चौखट पर कोई पधारे ऐसा कभी न हुआ , हां इनसे (भाभी ) जरूर अपेक्षा रखी जाती थी। 

पति बेचारा अपने संस्कारो और रिश्तो के बीच एक झूले की तरह झूल रहा था।  गुलमोहर की तरह खिला रहने वाला चेहरा आज छुईमुई की याद दिला रहा था।  सबसे ज्यादा फ़िक्र तो उसे पड़ोसियों की थी जो दिन रात उसकी चौखट पर कान लगाए रहते थे।  आज अगर एक आवाज भी घर के बाहर गई तो पुरे मोहल्ले को मिर्च मसाला लगाने का मौका मिल जायेगा।  कल ही मिश्राइन आंटी कह रही थी की


  ' भई पूरा मुहल्ला आप के बेटे और बहु की तारीफ़ करता है , कैसे आते ही उसने पूरे परिवार को संभाल लिया।  आजकल ऐसी बहुए मिलती कहाँ है मुझे तो जलन होती है आपके राम जैसे बेटे और सीता जैसी बहु को देखकर '. 
वही मिश्राइन आंटी आज इस घर की बहु का नागिन रूप देखकर क्या कहेंगी। 

तिवराइन आंटी तो नारद मुनि का  स्त्री  संस्करण है जैसे नारद मुनि तीनो लोक में अपने पेट की बात उगिल कर आते थे वैसे ही तिवराइन आंटी अगल - बगल के तीनो मुहल्ले में कथा बाच  आती है , ऊपर से आज तो धनतेरस है एक ही स्थान पर रायता फ़ैलाने के लिए उन्हें पूरा समूह मिल जायेगा और दिवाली के  पटाखे की तो जरुरत ही नहीं पड़ेगी जब इतना बड़ा बम उनके पास होगा तो, मोहल्ले के हर घर में एक - एक बम गिराती जाएँगी और तबाही मचेगी हमारे घर में। 

देवर अपने तेवर को ठंडा करके एक कोने में बैठा हुआ था।  कहीं भैया भौजी का पूरा फ्रस्टेशन उसपे ना निकाल दे। अगर भैया अलग हो गए तो ? वो तो कहीं ना कहीं नौकरी करके अपना पेट पाल लेगा लेकिन माँ बाउ जी का क्या  ?  जिन्होंने अपने जिंदगी की पूरी पूंजी इस घर को बनवाने में और भैया को पढ़ाने में इस उम्मीद से  लगा दी  की वही तो उनके बुढ़ापे का सहारा है।  नहीं तो प्राइवेट नौकरी में इतना पैसा कहा की कुछ अपने लिए बचा के रख सके उनके जीवन भर की पूंजी तो हम दोनों भाई ही है। 

बहन दो दिन पहले ही ससुराल से आई थी। उसे पता था की भाभी बड़े घर की लड़की है थोड़ा भाव - ताव है लेकिन भैया पर उसे पूरा भरोसा था।  लेकिन अगर भैया ने भाभी की बात मान ली तो  ? आखिर वो भी तो उनकी धर्मपत्नी ही है ।  आखिर कब तक भैया हम सबके लिए अपना निजी सुख चैन त्यागते फिरेंगे ? अगर भैया अलग हो गए तो राखी के दिन वो किस भाई के घर पहले जाएगी ?

ससुर बेचारे धर्म संकट में फंसे हुए थे एक तरफ पुत्र मोह था तो दूसरी तरफ उसी पुत्र के  गृहस्थी की चिंता।  एक तरफ उनकी जिंदगी भर की कमाई हुए इज्जत थी तो दूसरे तरफ उनके बुढ़ापे की लाठी। 

त्यौहार को देखते हुए सर्वसम्मति से  फैसला  हुआ  की  त्यौहार के बाद  भैया बगल के जिले में जहाँ उनका ससुराल भी है  तबादला कराकर भाभी के साथ प्रस्थान करेंगे  जिससे  घर की इज्जत भी सलामत रहेगी  और मुहल्ले  से लेकर रिश्तेदारों के  मुख भी  दीवाली की मिठाई खाने  के अलावा  किसी अन्य कार्य हेतु नहीं खुलेंगे। 

फैसले के बाद कुछ छणो तक पुरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था , सिवाय  भाभी के कमरे के। 

भाभी के कमरे से सुरीले स्वर में  गुनगुनाने की आवाज आ रही थी। 

कौन तुझे यूँ प्यार करेगा........  जैसे मैं करती हूँ  ........ 



इन्हे भी पढ़े -  कहानी   
                      वो   




इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...